'अल्पसंख्यक' के मायने में इतना 'विरोधाभाष' ?


मेरा नियमित कालम  लीक से हटकर 


( शिख़र वाणी और संवाद इंडिया डॉट कॉम के लिए )


सुरेश शर्मा 


भोपाल। भारत वर्ष में अल्पसंख्यक विश्व के अल्पसंख्यकों से अधिक सन्तुष्ट और विकास पाने वाले लोग हैं। इनको तेज हवा का झौंका भी लगता है तब देश के राजनीतिक दल चिन्ता में आ जाते हैं। अन्य देशों में ऐसा नहीं है। यदि बार-बार हुये आकंलनों को भी लिखे तब भी भारत का अल्पसंख्यक मुसलमान इस्लामिक देशों के मुसलमानों से अधिक सुरक्षित और खुश है। वह हैपीनैस इंडेक्स में अव्वल है। इसका श्रेय देश की सहिष्णु संस्कृति और हिन्दूओं की सोच को दिया जाना चाहिए। क्योंकि वे भाईचारे में विश्वास रखते हैं और मिलजुक रहने में भरोसा करते हैं। दूसरे नम्बर पर देश की राजनीतिक फिजा को कहा जा सकता है क्योंकि वह मुसलमानों को नागरिक नहीं वोट बैंक मानती है और उसको केवल इसलिए सुरक्षित रखती है ताकि उसका वोट उसकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी की बजाये उसे ही मिलता रहे। वह इसके लिए किसी भी स्तर तक आ जाता हैं। अनेकों ऐसे उदाहरण हैं। यदि इसी अल्पसंख्यक को पड़ौसी देशों में निहारे तब एक अलग ही सच सामने आता है। पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में जो अल्पसंख्यक हैं वे सताये हुये हैं। धर्म परिर्वतन का शिकार हैं। उनकी युवा होती बेटियों के अपहरण, धर्मपरिवर्तन और जबरिया निकाह से ग्रस्त हैं। जब इनको नागरिकता की बात होती है तब भारतीय राजनीतिक दलों की मायने निकालने की मशीन में विरोधाभाष आ जाता है। क्यों?
अल्पसंख्यक भारत का हैं तो उसके अलग मायने है और यदि वह पाक, बंगलादेश और अफगानिस्तान का है तब उसका मतलब अगल। ऐसा क्यों है? भारत वर्ष में अल्पसंख्यक शब्द मूलत: धार्मिक मुसलमानों, जैन और सिक्खों आदि के लिए है। जबकि पाकिस्तान में इसका मतलब होता है हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिक्ख, पारसी और इसाई। यहां के अल्पसंख्यकों के वोट पाने के लिए हमारे देश के तथाकथित सेक्युलरवादी दल इतने डरपोक हो गये हैं कि वे उन तीन देशों के आने वाले अल्पसंख्यक हिन्दूओं का जमकर विरोध कर रहे हैं। धार्मिक आधार पर प्रताडि़त इन अल्पसंख्यकों को यदि भारत, नागरिकता देने के पहले से स्थापित कानून को सरल बनाता है तो देश को आग के हवाले कर दिया जाता है यह कैसे और क्यों होना चाहिए? यह दलों में अल्पसंख्यकों की परिभाषा में भी भेदभाव है और इनके प्रति दलों की मानसिकता में भी भेदभाव है। क्या यह हिन्दूओं के प्रति इन दलों की मानसिकता और सोच में भेदभाव तक पहुंचता है?
सीएए की बात करते हुये ये दल एनआरसी को अधिक केन्द्रीत करते हैं। एनआरसी का मतलब यह है कि देश में भारत के अलावा किसी देश का नागरिक अवैध रूप से नहीं रह रहा है? उसकी पहवान कराकर उसे उसके मूल देश में भेजा जा सके। यह वर्षों पुरानी देश की मांग है। इसको लेकर सभी दलों की सोच भी समान थी। लेकिन अब यकायक आया बदलाव आजादी के समय हुये बंटवारे की याद को ताजा कर रहा है। उस समय पाक में हिन्दूओं और भारत में मुसलमानों के प्रति भेदभाव की कथा सुनते हैं लेकिन अब तो यह भारत में ही भारत के दोनों पक्षों में भेदभाव दिखाई दे रहा है। अभी यह दलों के संरक्षण में है लेकिन यह जनमानस में चला गया तो बहुत दुखद होगा।