'आओ' फिर से दिया जलाएं याद आये 'अटल जी'


 


सुरेश शर्मा (लीक से हटकर) 


भोपाल। जब कल शिवसेना के एकमेव प्रवक्ता संजय राउत ने एक शेर लिखा कि "तुम से पहले एक वो जो शख्स यहां तख्त-नशीं था। उसको भी अपने खुदा होने पे इतना ही यकीं था।" तब तक यह लग रहा था कि तीन दलों में सरकार बनाने की संभावना बची है। लेकिन जब एनसीपी सुप्रीमों शरद पवार दिल्ली आये तो मीडिया ने उनके सरकार बनाने की संभावनाओं के बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि सरकार बनाने की बात आप शिवसेना और भाजपा से पूछिये जिन्होंने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था और उन्हें जनादेश मिला था। तब तक यह नहीं लग रहा था कि सरकार बनने की संभावनाएं समाप्त हो गई होंगी। लेकिन शाम को जब श्रीमती सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात हुई और फिर मीडिया ने उनसे पूछा कि क्या हुआ सरकार कब बन रही है तब उन्होंने कहा कि हमसे आज तक सरकार बनाने के संबंध में कोई बात हुई ही नहीं है। इस विषय पर कोई चर्चा नहीं अपितु हम महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर रखे हुये हैं। जो भी हो इससे सरकार की संभावनाओं पर कुहासा छाता हुआ दिखाई दिया। रही सही कसर प्रधानमंत्री ने एनसीपी की तारीफ करके निकाल दी। हालांकि इन सभी बातों का मतलब यह नहीं निकाला जा सकता था कि  महाराष्ट्र में सरकार बनने की सभी संभावनायें समाप्त हो गई हैं।


आज सुबह से मीडिया फिर से इसी बात को लेकर लगा हुआ है। आज भी केन्द्र में संजय राउत ही हैं। उन्होंने फिर से टवीट किया है। इस बार कोई शायर नहीं कवि हैं। कवि भी कोई सहज नहीं। सबके प्रिय लोकप्रिय बटल जी हैं। शिवसेना ने अपनी स्थिति संजय राउत साहब के इस नये टवीट से सबके सामने रख दी। अटल जी की कविता के ये अंश हैं:-
'आहुति बाकी, यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा,
अन्तिम जय का वज्र बनाने, नव दधीच हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दीप जलायें।' अटल बिहारी वाजपेयी की इन पंक्तियों ने राजनीति को एक बार फिर से साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाने का प्रयास किया है। अटल जी सहारा हो सकते हैं। जनादेश के सम्मान का रास्ता निकल सकता है। शिवसेना के कदम लडख़ड़ा रहे हैं और वापस पुराने गठबंधन की ओर वापस आ सकते हैं। राजनीति और क्रिकेट संभावनाओं से भरे हो सकते हैं। जब संजय राएत ने अपने तीखे बयानों से कटुता घोलने का प्रयास किया था तब भी और आज जब उन्होंने सांझी विरासत की बात की है तब भी।


विरासत बहुत महत्वपूर्ण विषय है। हर कोई उसको समझ ले यह उसकी योग्यता की बात होती है। उद्धव ठाकरे इस विरासत को संभाल नहीं पाये। उनके साथ हिन्दू दिलों में राज करने वाले बाला साहब ठाकरे का हाथ है। तब उन्हें किसी हाथ वाले की क्या जरूरत थी? लेकिन सपना दिखाया गया। सपना साकार होने जैसी स्थिति बनती हुई भी दिखाई गई। लेकिन सब मृगमारीचकी थी। जब आंख खुली तो अटल जी याद आ गये। अटल जी दूसरे पक्ष को भी याद आयेंगे और देश को एक विचार का संगम मिलेगा। इससे सबक यह मिलता है कि जब तक हाथ में कुछ अधिक न हो तब तक आशायें पालने का कोई औचित्य नहीं होता है।