भाजपा प्रदेश में अपना संगठन फिर खड़ा करने में जुटी


 


भोपाल। विशेष प्रतिनिधि
प्रदेश भाजपा को नया अध्यक्ष मिलने जा रहा है। वह अध्यक्ष जिसमें संगठन के गुण हों और सरकार की छाया से बाहर आ सके। पन्द्रह साल तक सरकार होने के कारण प्रदेश में भाजपा अपने काडर को दलालों के हाथों खत्म करवा चुकी है। नेतृत्व में भी वही गुण आ गया। कार्यकर्ता भाव समाप्त होने के बाद दलालों के हाथों में खेलने और संगठन जन प्रतिनिधियों के पेरोल पर होने के कारण ही शिवराज सरकार बनाने से कुछ दूर रह गये। इसके बाद नेतृत्व की अयोग्यता कई बार सामने आई है। क्योंकि कमलनाथ की सरकार को संकट में लाने के प्रयास सफल नहीं हो पाये। मतलब यह है कि भाजपा का संगठन नेतृत्व व कार्यकर्ता विहीन हो जाने के कारण आक्रामक चौराहों तक सीमित हो गया।


यह बात नहीं है कि कमलनाथ सरकार आने के बाद भाजपा ने प्रदर्शन या विरोध नहीं किया है। लेकिन जो विरोध भाजपा करती थी और कार्यकर्ता का उत्साह होता था। जनता की भागीदारी होती थी वह कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है। जनता की भागीदारी वाला प्रदर्शन अब चौराहों की शोभा बढ़ा रहा है। चौराहों पर नेताओं के भाषण की तलब शान्त कर ली जाती है और मीडिया की कटिंग लगाकर आत्म सन्तुष्टि कर ली जाती है। जनता में आन्दोलन की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। जब शिवराज की सरकार थी तब भी जनता की प्रतिक्रिया आती थी अब तो वह भी मजे ले रही है।


ऐसे में संगठन के चुनाव को लेकर सबकी नजर लगी हुई है। मंडलों के चुनाव चल रहे हैं। महीने के अन्त तक जिलों के चुनाव हो जायेंगे। इसके बाद प्रदेश का नया मुखिया कौन होगा वह तय होगा? अभी ऐसा कोई नाम तय नहीं हो पाया है। मोदी-शाह की जोड़ी ने अपने को सर्वोच्च मान लिया है और राज्यों के भाग्य विधाता हो गये हैं इसलिए स्थिति यह हो गई जो हमें महाराष्ट्र और हरियाणा में दिखाई दे रही है। बहुमत से अधिक सीटें मिला करती थीं अब बहुमत के लाले पडऩे लग गये। कारण यह है कि प्रदेश के चुनाव पाकिस्तान को फोडऩे और 370 हटाने से नहीं जीते जाते हैं। प्रदेश के चुनाव तो प्रदेश के नेताओं की कारगुजारियों से ही जीते जाते हैं। प्रदेश में चुनाव हारने के बाद समझ में आया कि यहां तो संगठन ही नहीं बचा। जो पदाधिकारी हैं वे तो कार्यकर्ता नहीं बल्कि प_े हैं। यह बात बड़े पदों पर बैठे नेताओं पर जब लागू होने लग गई तब संगठन चरमरा गया। संघ को समझ में आया कि जिस प्रदेश का कार्यकर्ता देवदुर्लभ है वह तो दलालों के नीचे दबा हुआ है। जिन परिवारों ने जनसंघ से भाजपा तक काम किया उनके खाली पेट मोटे पेट वालों के सामने दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। जब पुराने वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि भाजपा का कार्यकर्ता कुपोषण का शिकार हो गया और वह काम करने की स्थिति में खड़ा ही नहीं हो पा रहा है तब आंखे खुली हैं।


अब यह चर्चा है कि प्रदेश के संगठन में वे ही चुनकर आयें जिनकी संगठन में रूचि हो। उनके कहने पर कार्यकर्ता खड़ा होकर सड़कों पर आ जाये। सरकार के खिलाफ ताकत से लड़ सके और उसकी आवाज भी जनता अपनी आवाज मिला सके। हालांकि अभी ऐसे कार्यकर्ताओं की तलाश भर शुरू हुई है। जिन्होंने सत्ता को करीब से भोगा है वे क्या ऐसा होने देंंगे यह सवाल अपना उत्तर तलाश रहा है?


लेकिन यह खबर पुख्ता है कि भाजपा अपना संगठन जनप्रतिनिधियों के यहां गिरवी रखे से छुड़ाने का प्रयास कर रही है। यदि वह ऐसा करने में कामयाब होती है तब समझ में आयेगा? नहीं तो ऐसा नहीं लगता कि सड़क से सदन तक मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने हर मुद्दे पर मात खाने वाला नेतृत्व प्रदेश में भाजपा को फिर से स्थापित करने में कामयाब हो पायेंगे?