‘दो दलों’ का भक्षण करने की स्थिति में ‘पवार’ 


भोपाल। सुरेश शर्मा 


बहुत से समीक्षक यह कह रहे हैं कि शिवसेना तो यदि भाजपा के साथ गठबंधन में रहेगी तब भी वह समाप्त होने की स्थिति में ही जा रही है। लेकिन मेरा मत यह है कि वह साथ चलने में नहीं बल्कि पैतरेबाजी करने के कारण मतदाताओं में अविश्वसनीय होती जा रही है। जिसके कारण खत्म होने के रास्ते पर बढ़ रही है। हिन्दूत्व के कारण मतदान करने वाले मतदाता शिवसेना को भाजपा की तुलना में अधिक प्रभावशाली और दमदार मानते हैं। अब तो यह स्थिति ही बदल गई। महाराष्ट्र में शिवसेना का मुख्यमंत्री के लिए कांग्रेस और राकांपा के साथ जाने का मतलब यह है कि वह अपने काठरे परिवार का पूर्व मुख्यमंत्री तो बनवा लेंगे लेकिन बाद में वे गठबंधन करने के लायक भी नहीं रहेंगें? यदि ठाकरे परिवार से इतर मुख्यमंत्री बनाते हैं तब तो दूर जाने का मतलब ही क्या है? ऐसी ही हालत में कांग्रेस है। उसके नेताओं को मालूम है कि यदि वह शिवसेना के साथ सरकार में शामिल होती है तब उसकी स्थिति बिहार, यूपी और अन्य उन बड़े राज्यों की भांति हो जायेगी जहां वह तीसरे स्थान पर खड़ी है। यही कारण है कि वह सत्ता में शामिल होने की बजाय बाहर से समर्थन देने की जिद कर रही है। शरद पवार की राजनीति यह है कि वह कांग्रेस को सरकार में शामिल कराकर और शिवसेना को मुख्यमंत्री के मोह में फंसाकर डकारना चाह रहे हैं।


इस प्रकार से शरद पवार अपनी राजनीति करने में कामयाब हो गये हैं। वे अब दो दलों का भक्षण करके महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे ताकतवर स्थिति में खड़े हो गये हैं। वहां भाजपा को चुनौती देने की स्थिति से शिवसेना भी बाहर हो गये और कांग्रेस की हैसियत तो पहले भी ऐसी नहीं थी। अब इस बात की समीक्षा होना चाहिए कि भाजपा और शिवसेना में से कौन किसके सहारे आगे बढ़ रहे हैं? तब पहला जवाब यह होगा कि भाजपा ने शिवसेना और उससे भी अधिक बाला साहब ठाकरे के कारण महाराष्ट्र में अपने पांव जमाये हैं। 2014 तक वह छोटे भाई की भूमिका में ही रही है। लेकिन उद्धव ठाकरे की राजनीति में उन्हें छोटा भाई बना दिया। अब वे गठबंधन को छटक कर जा रहे हैं। तब उनके अस्तित्व का संकट पैदा होना स्वभाविक है। हम केजरीवाल का उदाहरण दे सकते हैं। उनको 67 सीट इसलिए मिली थीं कि वे राजनीति में एक नया र्फाूला लेकर आये थे। लेकिन जब से वे सेक्युलर फार्मेट में आये हैं तब से उनकी लाइन भी उसी भीड़ में हो गई जो पहले से लगी है। शिवसेना ऐसी ही भीड़ में शामिल होने जा रही है।


कांग्रेस का नेतृत्व समझ रहा है कि शरद पवार उसकी नास्ता बनाना चाह रहा है लेकिन वह गठबंधन में है और वह साथ झटक नहीं पा  रही है। जिस भी राज्य में कांग्रेस ने क्षेत्रीय दल की अधीनता स्वीकार की है वह अपने अस्तित्व को खोती जाती है। जितने भी देश के बड़े राज्य हैं वहां कांग्रेस तीसरे या चौथे क्रम की पार्टी बन गई है। कुछ राज्य हैं जहां उसके अकेले के दम पर सरकार बनाने की स्थिति दिखती है, उसमें महाराष्ट्र भी एक है। लेकिन यहां अब वह शरद पवार के राजनीतिक जाल में फंस चुकी है। भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए सरकार तो बन सकती है लेकिन शरद पवार इस खेल में दो राजनीतिक दलों को प्रदेश में भक्षण करने में कामयाब हो रहे हैं।