'पर्सनल ला' की तुलना में खड़ा मत करिये 'सर्वोच्च् ला' 


 


सुरेश शर्मा ( लीक से हटकर)


भोपाल। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की बैठक लखनऊ में हुई है। उसमें यह तय किया गया है कि राम मंदिर मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत का जो निर्णय आया है उसकी समीक्षा करने के लिए अपील की जायेगी। कुछ तर्क भी दिये हैं जिसको आधार बनाया जायेगा। पर्सनल ला बोर्ड को यह गलत फहमी है कि न्यायालय ने माना है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण नहीं किया गया। जबकि देश की फिजा को ध्यान में रखते हुये न्यायालय ने वही सब कहा है जिसकी जरूरत थी। जब यह कहा गया कि जिस स्थान पर मस्जिद बनाई गई है उस स्थान पर धार्मिक स्थल याने मंदिर का ढ़ांचा मिला है। यह प्रमाण नहीं मिला कि मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गई लेकिन वहां पहले मंदिर था। इसलिए बिना गिराये तो मस्जिद नहीं बनाई गई होगी? यह भी है कि उस समय इस बात का प्रमाण हैं कि उस दौर में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मंदिरों को ध्वस्त किया जाता था। बाबरी मस्जिद भी इसी बात का प्रमाण रही है कि आक्रान्ताओं ने देश की आस्थाओं के प्रतीक भगवान राम के जन्म स्थान पर बने मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया था। उससे पहले वहां मस्जिद थी इसका कोई प्रमाण न्यायालय के सामने नहीं रखा गया। इसलिए यह विवाद जितना जल्दी शान्त हो उतना ही बेहतर रहेगा। वहां मुस्लिम भाईयों की आस्था नहीं हिन्दू भाईयों की आस्था जुडी है।


निर्णय आये अब तो एक सप्ताह से अधिक का समय हो गया। देश का हर वर्ग इस निर्णय से सहमत है। यदि किसी के मन में असहमति भी है तब भी वह बड़ा दिल दिखाकर देश की फिजा को शान्त करने में सहयोग दे रहा है। सबसे खास बात यह है कि मुस्लिम पक्षकारों ने भी निर्णय को स्वीकार कर लिया है। वे समीक्षा के लिए न्यायालय को नहीं कहने वाले हैं। हिन्दू नेताओं ने भी शालीनता से स्वीकार कर लिया है। हालांकि उनके पक्ष में है इसलिए वे शालीन हो गये होंगे लेकिन अत्याधिक उत्साह नहीं दिखाये जाने का मतलब यह निकाला जा सकता है कि वह चिड़ाने की बजाये आभार मानने की मंशा दिखा रहा है। यही वह दिशा है जो भारत के लिए सही भी है और हमारे देश की गंगा जमुनी तहजीब का प्रमाणित करती है। अब यह देखने की बात है कि इसे कौन भंग कर रहा है। क्या किसी कट्टर हिन्दू ने कोई बयान दिया या अति उत्साह दिखाया। बाबरी ढ़ांचा गिराये जाने के बाद भी उत्साह चरम पर था लेकिन निर्णय के बाद संयम है। यही संयम देश की धरोहर है।


ऐसे में मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को यही सलाह है कि वह देश की भावनाओं को समझे। न्यायालय का सम्मान करे और यह भी समझे की जब बाजार सजा है तब तो दुकान तो अन्य किसी माल की भी चल जायेगी? ग्राहक हैं तब उसको किसी और जरूरत के बहाने माल टिपाया जा सकता है। राम मंदिर का विषय वर्षों से भुनाया जा चुका है इसे और बाजार में रखने की जरूरत नहीं है। तब यही सवाल निकलता है कि पर्सनल ला बोर्ड को देश के सर्वोच्च ला को चुनौती नहीं देना चाहिए। प्याज की परत छीलने से अन्दर कुछ नहीं निकलने वाला है। जो निकलना था निकल चुका है। सरकार कानून बना रही है तब लकीर पीटने का कोई लाभ नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने बता दिया तो बता दिया।