भोपाल। भाजपा एक राजनीतिक दल है और दूसरे किसी भी प्रतिद्वंद्वी दल को उसकी आलोचना करने का अधिकार है। उसके नेताओं की कार्यशैली को यदि अपनी विचारधारा से अलग समझा जाये तो उसको सार्वजर्निक करने और उसका तुलना में अपनी विचारधारा को बताने का अधिकार भी है। ऐसा हम समय होता रहा है। कांग्रेस जब केन्द्र की सरकार में थी तब उसकी आलोचना भाजपा करती रही है इसलिए भी अब कांग्रेस को भाजपा की आलोचना करने से कौन रोक सता है। लेकिन यह विषय विचारधारा और उसमें भी किसी महापुरूष से जुड़ा हुआ हो तब हमें अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है। पिछले समय से महात्मा गांधी को नाथुराम गोडसे की बराबरी में पेश करने का प्रयास हो रहा है। यह भी लिखा गया है कि देश में गांधी की चर्चा कम लेकिन गोडसे की आलोचना करते हुये चर्चा अधिक हो रही है। ऐसे में साध्वी प्रज्ञा और अब वे भाजपा की सांसद बन गई हैं तब उनके द्वारा रह रह कर गोडसे को देशभक्त कहने की अधिक चर्चा हो रही है। यह तुलना गांधी और गोडसे में होने लग गई। गांधीवाद की तुलना में गोडसेवाद को पेश किया जाने लगा। कोई मंदिर बना रहा है कोई मुकदमें दर्ज करा रहा है। लेकिन बात अब आगे निकल गई। कुछ नेता अपने को चमकाने के लिए गांधी को अफजल के मुकाबले खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं।
याद ही होगा कि जेएनयू में कन्हैया कुमार को देशद्रोही बताने का मामला हुआ था। न्यायालय ने उस पर संज्ञान भी लिया था। प्रकरण चल ही रहा है। वहीं से एक नारा निकल कर आया था जिसके कारण देशद्रोही और टुकड़े-टुकड़े गेंग नामक शब्द प्रचलन में आये थे। यहीं पर एक नारा लगा था अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं। अफजल के पैरोकार उन्हें फांसी दिये जाने के विरूद्ध थे। जिन्होंने फांसी दी उनको सजा देने की बात नारे में कर रहे हैं। अब अफजल को हटाकर वही नारा गांधी याने बापू के लिए जारी कर दिया गया। बापू हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं। सबको पता है कि बापू के हत्यारे को 15 नवम्बर 1947 को फांसी की सजा हुई थी। फिर अब इस नारे का मतलब क्या है? जैसे पहले गांधी को देश ने राष्ट्रपिता माना और गोडसे को विस्मृत कर दिया। कुछ लोगों ने गोड़से को जिंदा कर दिया। फिर उनके सामने गांधी को अड़ा दिया। गोडसे ने एक बार गांधी को मारा था उनके समर्थक उन्हें रोज मार रहे हैं। कई बार तो लगता है कि गोडसे गांधी से अधिक चर्चा में लिये जाने वाला नाम है? ऐसा क्यों?
गांधी को गोड़से के सामने खड़ा करने के बाद गांधी का कुछ नहीं बिगड़ा। क्योंकि गांधी विश्व में माने और पूजे जाने वाला नाम है। इसलिए गांधी को कोई अन्तर नहीं पड़ा। अब कुछ तत्वों ने और खासकर जिन्हें वंदेमातर से परहेज है, जिन्हें राममंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में न्याय नहीं दिखाई दे रहा है वे लोग अफजल का नाम हटाकर गांधी का नाम वहीं पर जोडऩे का प्रयास कर रहे हैं। वे गांधी को गोडसे से नीचे लाने की मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं। सवाल यह है कि क्या सांसद प्रज्ञा के गोडसे को भी महान बता देने से गांधी का कद कम हो जायेगा? नहीं लेकिन गांधी जब अफजल से बराबरी करेंगे तब उन्हें नुकसान जरूर होगा।
'अफजल' के पायदान पर खड़ा कर दिया 'बापू' को