सुरेश शर्मा (लीक से हटकर)
भोपाल। सीटीजन एबेंटमेंट बिल (सीएबी) याने कि नागरिक संशोधन बिल को लेकर राज्यसभा में आज बहस चल रही है। यह माना जा रहा है कि यहां से यह बिल पास हो जायेगा तब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद जिस कानून में संशोधन होगा वहा स्थापित कर दिया जायेगा। इस कानून में संशोधन क्यों और क्या करना पड़ रहा है यह देश के गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि तीन देश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश से प्रताडि़त होकर भारत आने वाले हिन्दू, सिक्ख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है। पहले इसके लिए जो प्रावधान थे उन्हें और सरल बनाया गया है। विपक्ष जिसमें कांग्रेस और टीएमसी शामिल है का कहना है कि इसमें मुसलमान को क्यों शामिल नहीं किया गया और धार्मिक आधार पर नागरिकता का प्रावधान करना संविधान की मूल भावना के विपरीत है। सरकार का कहना है कि ये लोग इन देशों में धार्मिक आधार पर प्रताडि़त हो रहे हैं तब इसका उल्लेख करना पड़ रहा है जो संविधान की भावना को प्रभावित नहीं कर सकता है। लेिकन इसमें इससे बड़ी बात यह है कि शिवसेना अजीब स्थिति में फंस गई है। वह हिन्दूत्व विचार को छोड़ती है तो अगली बार में उसका खेल खत्म हो जायेगा और बिल का साथ देती है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जायेगी। याने कि आत्महत्या तो होगी ही। अब तो वह खुद ही फंदे में सिर डालने का प्रयास कर रही है।
सीएबी करे लेकर देश में विचार भिन्नता है। पाकिस्तान जब बना था हिन्दूओं की संख्या 16 प्रतिशत थी अब एक प्रतिशत रह गई। भारत में मुसलमानों की संख्या में व्यापक इजाफा हुआ है। इसके बाद भी विपक्षी दल सोचते हैं कि यदि तीन देशों का गैर मुसलमान नागरिक बन जरयेगा तो उससे मुसलमानों को तकलीफ हो जायेगी। रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैटियों को लेकर कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि वह वोट बैंक है लेकिन इन तीन देशों का प्रताडि़त नागरिक शरण लेकर वर्षों से भारत में रह रहा है उसकी नागरिकता पर सवाल उठ रहा है क्योंकि वह इसके बाद भाजपा का वोटर हो जायेगा? क्या यह सोच वोटबैंक के आधार पर नहीं है? इसका मतलब यह हुअब कि अब वोटबैंक और सत्ता की लालच उस ठाकरे परिवार को भी हो गई जहां सत्ता को रिमोड़ से चलाने की बात की जाती थी। जहां सिद्धान्त से बड़ी सत्ता होती थी। संजय ने जहां भी भूमिका निभाई राज सिंहासन तो मिला लेकिन वंश खत्म हो गया। महाभारत इसका उदाहरण है। तब और तकलीफ होती है जहां अंधा घृतराष्ट्र नहीं खुद संजय ही हो।
शिवसेना का आधार ही मराठी मानुष और हिन्दूत्व हो। वह सत्ता के लिए उसे कांग्रेस और राकांपा के सामने समर्पित कर चुकी है। चलिए उसमें यह भाव अन्तर्निहित था कि सत्ता में रहने के बाद उद्धव ठाकरे ऐसा कुछ करेंगे जो हिन्दू समाज के लिए हितकर होगा। लेकिन तीन मुस्लिम देशों से प्रताडि़त होकर आने वाले हिन्दूओं के लिए उसके मन में अब कोई भाव नहीं बचा। लेकिन जो बचा था वह संसद के बाद समाप्त हो गया। राज्यसभा में शिवसेना ने सोनिया की धमकी के सामने आत्म समर्पण कर दिया। लगता है शिवसेना खुद आत्महत्या करने के लिए फंदे में सिर देने का प्रयास कर रही है।